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साइकिल पर पिज्जा डिलीवरी करने को मजबूर अफगानिस्तान के पूर्व आईटी मंत्री, सामने आईं बेबसी की तस्वीरें, बताई वजह

 अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होने के बाद नेताओं में भी दहशत का माहौल बना हुआ है। कई नेता काबुल छोड़कर दूसरे देश में शरण ले रहे हैं। इसी क्रम में अफगानिस्तान के पूर्व आईटी मंत्री सैयद अहमद शाह सादत भी जर्मनी में शरण लेने को मजबूर हो गए। सादत ने यहां रहने का तो प्रबंध कर लिया लेकिन रोजी-रोटी के लिए साइकिल पर पिज्जा डिलीवरी करने को मजबूर हैं। अहमद शाह सादत ने भी अफगानिस्तान सरकार से मतभेद के बाद अफगानिस्तान को छोड़ा दिया था और शुरूआत में किसी को नहीं पता था कि वो अफगानिस्तान से निकलकर कहां गये हैं। लेकिन अब खुलासा हुआ है कि वो जर्मनी में हैं और पैसे कमाने के लिए एक पिज्जा बेचने की दुकान में काम कर रहे हैं।

आपको बता दें कि आज जर्मनी में पिज्जा बेचने को मजबूर अहमद शाह सादत एक साल पहले तक अफगानिस्तान सरकार में आईटी एंड कम्यूनिकेशन टेक्नोलॉजी मिनिस्टर थे और एक वक्त अफगानिस्तान की राजनीति में उनका काफी दबदबा हुआ करता था। लेकिन, अब वो जर्मनी के लिपजिंग शहर में पिज्जा की होम डिलीवरी कर रहे हैं। एक वक्त जर्मनी में कई ओहदों को संभाल चुके अहमद शाह सादत को हालांकि, पिज्जा डिलीवरी बॉय कहने में शर्म नहीं आती है और वो अपनी स्थिति को स्वीकार कर रहे हैं।

हालांकि, इस बात का पता अभी तक नहीं चल पाया है कि क्या वो वास्तव में इतने गरीब हो चुके हैं कि उनके पास पिज्जा डिलीवरी करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था।

जर्मनी के एक पत्रकार ने अहमद शाह सादत की तस्वीर को सोशल मीडिया पर सबसे पहले शेयर किया और फिर वो फोटो जमकर वायरल हो गया। इसके साथ ही जर्मन पत्रकार ने अफगानिस्तान के पूर्व मंत्री अहमद शाह सादत से बात भी की, जिसमें उन्होंने अफगानिस्तान के मुद्दे और अपनी माली हालत के बारे में बेबाकी से बात की है। उन्होंने कहा कि पिछले साल के अंत में उन्होंने अफगानिस्तान सरकार से अपना इस्तीफा दे दिया था और फिर वो जर्मनी आ गये थे।

अहमद शाह सादत ने जर्मनी पत्रकार को दिए इंटरव्यू के दौरान बताया कि जर्मनी आने के बाद कुछ समय तक तो उनके पास जमा किया हुआ पैसा था, लेकिन धीरे-धीरे पैसे खत्म होने लगे तो उन्होंने जीवनयापन करने के लिए कोई काम करने की सोची और उन्होंने पिज्जा डिलीवरी बॉय का काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने इंटरव्यू के दौरान कहा कि अफगानिस्तान छोड़ने का फैसला उन्होंने इसलिए किया था, क्योंकि उन्हें लगने लगा था कि अब तालिबान को काबुल आने से कोई नहीं रोक सकता है।

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