छत्तीसगढ़ इतिहास

अब समस्या के समाधान के लिए एप का प्रयोग

 छत्तीसगढ़़ में हाथियों की संख्या बढ़ती जा रही है,इसी के साथ हाथियों के हमले में मरने वालों की संख्या भी बढ़ती जा रही है साथ ही हाथियों के भी मरने के मामलों की संख्या बढ़ी है। समस्या तो यह है कि आदमियों को हाथियों से बचाना है तो हाथियों को भी आदमी से बचाना है। यानी आदमी-हाथी द्वंद्व ऐसी समस्या है जिसमेें दोनो मारे जाते हैं और दोनों को बचाना है। छत्तीसगढ़ राज्य बने दो दशक से ज्यादा समय हो गया है। तब से यह समस्या है और हर सरकार ने अपने तौर पर इस समस्या के समाधान का प्रयास किया पर समस्या का समाधान नहीं हुआ।


इसकी एक वजह यह भी बताई जाती है कि वन विभाग भी ऐसा सरकारी विभाग है, जिसमें भ्रष्टाचार करने के सबसे ज्यादा मौके होते हैं। वन विभाग के अधिकारी नई नई योजनाएं बनाते हैं और उसमें खूब भ्रष्टाचार होता है।मानव हाथी द्वंद्व को रोकने के लिए भी वन विभाग के अफसरों ने एक से एक प्रयोग किए और मानव-हाथी द्वंंद्व तो नहीं रुका, वन विभाग के अफसरों ने अपनी जेबें जरूर भर ली। अब जंगल मे तो कोई देखने नहीं जाता है कि वन विभाग से अफसर जो खर्च बता रहे है वह वाकई किया गया है नहीं। यही वजह है कि २३ साल मे दस से ज्यादा योजनाएं बनाई गईं, करोड़ो रुपए खर्च हो गए पर हाथी आज भी आदमी को और आदमी हाथी को मार रहे हैं।


मानव हाथी द्वंद्व रोकने के लिए छत्तीसगढ़ में कई योजनाए बनाई गईं जैसे सोलर फेंसिंग,इसका उपयोग हाथी को गांव के अंदर न आने देने के लिए करने को सोचा गया था, यानी हल्का करंट लगने से हाथी गांव के अंदर नहीं जाएगा, ऐसा सोचा गया, मधुमक्खी पालने करने की योजना बनाई गई कि जहां मुधमक्खी का छत्ता होता है हाथी नहीं आते हैं।अस्थायी ट्रांजिट कैंप, इस योजना के तहत वन विभाग जंगल में हाथियों को चारा देता था ताकि वह चारा खाकर जंगल में ही रहें, गांव की तरफ न आएं। बिगडै़ल हाथियों को गांव की तरफ आने से रोकने के लिए कर्नाटक से कुमकी हाथी लाए गए, हाथी को रेडियो कालर लगाने की योजना बनाई गई,हाथियों को लगाने रेडियो कालर खरीदे गए ताकि हाथी कहां है इसका पता चलता रहे तथा लोगों को सावधान किया जाए जब हाथी उनके गांव की तरफ आएं पर यह लगाया नही जा सका।


हाथी के गले में घंटी बांधने का फरमान जारी हुआ था.हाथी के गले में बांधने के लिए घंटी भी खरीदी गई लेकिन बांधी नहीं जा सकीं। गांवों की तरफ हाथियों को आने से रोकने के लिए गजराज वाहन खरीदे गए लेकिन हाथियों को गांवों की तरफ आने से रोका नहीं जा सका। पहले हाथियों की सूचना देने के लिए गांवों में मुनादी कराई जाती थी, अब मोबाइल का जमाना है तो हाथियो के गांव की तरफ आने की सूचना देने के लिए उसका प्रयोग किया जाने लगा है। अब तो वनविभाग ने एक एप बनवा लिया है। इसके जरिए अब 16 वनमंडल के गांवों के लोगों के मोबाइल से तुरंत हाथियो की लोकेशन के बारे में बताया जा सकेगा।


इससे गांव के लोग समय रहते सतर्क हो जाएंगे और मानव हाथी द्वंद्व को रोका जा सकेगा। अब तक मानव हाथी द्वंद्व की बड़ी वजह यह है कि लोगों को पता नहीं रहता है कि हाथी कहां है और उस  क्षेत्र में लोगों के जाने से ही सबसे ज्यादा लोग मारे जाते हैं। लोगों को पता नहीं रहता है कि जंगल में हाथी कहां और वह वहीं चले जाते हैं। आदमी को ठीक ठीक मालूम रहेगा कि हाथी कहां पर हैं तो मानव खुद को उससे बचा सकेगा। उसके गांव की तरफ आने की सूचना भी समय पर मिलने से लोग खुद को हाथी से बचा सकेंगे। बताया जाता है कि 11 साल में हाथियों ने 600 लोगों को मारा है। यानी हर साल 40-50 लोगों का हाथी मारते है। एप से गांव के लोगों को हाथी की सूचना मिलने पर अब हाथी के हमले में मरने वालों की संख्या जरूर कम होगी।


बताया गया है कि इस एप का सफल प्रयोग वनविभाग ने गरियाबंद उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व में किया है. अब इसे हाथी प्रभावित सात वनमंडल में लागू कर दिया गया है।छत्तीसगढ़ एलीफेंट ट्रेकिंग एंड एलर्ट एप से 10 किमी के दायरे में हाथियों की गतिविधियों की सटीक जानकारी मोबाइल से लोगों को दी जा सकेगी। बताया गया है कि दिंसंबर तक राज्य के सभी 16 वनमंडलों में एप का प्रयोग किया जाएगा। इससे सभी वनमंडलों में लोगों को हाथी के हमले से बचाया जा सकेगा।

विश्व हाथी दिवस पर पीएम मोदी ने भारत मेे हाथियों को प्राकृतिक आवास दिलाने की प्रतिबध्दता जताई है तो हाथी व मानव के द्वंद्व का एक मूल कारण यह भी है कि हाथियों का प्राकृतिक आवास अब नहीं रह गए है इसलिए वह मनुष्य के आवास तक पहुंच जाते हैं। वे मनुष्य को नुकसान पहंचाते है और मनुष्य उनको नुकसान पहुंचाता है।बताया जाता है कर्नाटक में छत्तीसगढ़ से कई गुना ज्यादा हाथी हैं लेकिन वहां मानव हाथी द्वंद्व की ऐसी समस्या नहीं है तो यहां भी ऐसी व्यवस्था जरूर की जा सकती है जिससे मानव हाथी द्वंद्व को रोका जा सके, दोनो को होने वाले नुकसान कम किया जा सके।

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