छत्तीसगढ़ इतिहास

छत्तीसगढ़ : भनवारटंक का मरही माता मंदिर : येजो रेल लाइन के पार दीवार दिख रही है, वो मन्नतों के नारियलों से पट गई है

 छत्तीसगढ़ : भनवारटंक का मरही माता मंदिर : येजो रेल लाइन के पार दीवार दिख रही है, वो मन्नतों के नारियलों से पट गई है

 रायपुर| ये भनवारटंक का मरही माता मंदिर है। यहां सालों से देवी मां के दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते रहे हैं। अपनी मन्नत को लेकर भक्त यहां श्रीफल, चुनरी, चूड़ियां और रक्षासूत्र बांधते हैं। ये मंदिर जंगल के बीच स्थित है। मंदिर प्रांगण की कोई ऐसी जगह नहीं, जहां चुनरी में लिपटे श्रीफल, रक्षा सूत्र और चूड़ियां बंधी हों। बिलासपुर से अगर रेल मार्ग से जाना चाहते हैं तो कटनी की ओर जाने वाली किसी भी पैसेंजर ट्रेन के जरिये भनवारटंक पहुंच सकते हैं। रेल मार्ग से भनवारटंक स्टेशन की दूरी बिलासपुर से 100 किलोमीटर है, जहां पहाड़ियों के बीच से गुजरती रेल लाइन यहां की मनोरम वादियों का दीदार भी करवाती है। सड़क मार्ग से पहुंचने के लिए कई रस्ते हैं। इनमें बिलासपुर से बेलगहना-खोंगसरा मार्ग या फिर केंवची मार्ग प्रमुख हैं  छत्तीसगढ़ में सतपुड़ा के घोर जंगल के बीच बसा छोटा सा गांव भनवारटंक बेलगहना में (भनवारटंक) मरही माता मंदिर की महिमा की वजह से प्रसिद्ध है। यहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। यहां शनिवार एवं रविवार को हजारों की भीड़ में लोग दूर -दूर से से अपनी मन्नत एवं परिवार की खुशहाली के लिए माता रानी के दर्शन के लिए आते हैं।

बिलासपुर कटनी रेल रूट पर स्थित भनवारटंक रेलवे स्टेशन से करीब चार सौ मीटर की दूरी पर रेलवे लाईन के किनारे स्थित मरही माता के मंदिर है। केवल पैसेंजर ट्रेनों का ठहराव होने के कारण यहां पैसेंजर ट्रेनो के समय खासी भीड़ उतरती है, जोकि जान जोखिम में डालकर रेलवे ट्रेक से ही होकर आना जाना करते हैं। यह मरही माता का आशीर्वाद ही कहा जाए तो कोई गलत नहीं होगा कि अब तक कोई हादसा यहां नहीं होने पाया है। ऐसी मान्यता है कि श्रद्धालु अपनी मन्नतें पूरी होने पर बकरे की बलि आज भी दे रहे हैं, मंदिर जिसके सामने भव्य तालाब है, जिस पर लोग भोजन प्रसाद भण्डारे की व्यवस्था है। भनवारटंक में सभी लोकल ट्रेन रूकती हैं, यहां पर कोई भी प्रकार से मोबाइल का नेटर्वक काम नहीं करता जिससे लोगों को बहुत परेशानिओं का सामना करना पड़ता है. नवरात्रि के समय में मातारानी के मंदिर के सामने से गुजरने वाली ट्रेनों के पहिए अपने आप रुक जाते हैं। माँ मरही माता के दरबार में मन्नत पूरी होने पर बकरे का बलि दिया जाता है। मन्नत को लेकर श्रद्धालु माता जी को श्रीफल, चूड़िया, चुनरी व रक्षासूत्र बांधते है।
 

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