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अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत ने रचा इतिहास : ड्रैगन अंतरिक्ष यान ISS से जुड़ा,14 दिन स्पेस में रहेंगे शुभांशु शुक्ला, इंटरनेशनल स्पेस सेंटर पहुंचने वाले बने पहले भारतीय

 भारतीय एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला सहित चारों एस्ट्रोनॉट इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पहुंच चुके हैं। उन्होंने कहा कि मेरी यात्रा देशवासियों की यात्रा है। ड्रैगन अंतरिक्ष यान की डॉर्किंग प्रक्रिया जारी है। इस मिशन का संचालन भारत के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला कर रहे हैं।



एक्सिओम-4 (Ax-4) मिशन के तहत भारतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला का ड्रैगन कैप्सूल अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) से जुड़ गया है। उनके ड्रैगन यान की सॉफ्ट डॉकिंग पूरी हो गई है और अब हार्ड डॉकिंग का काम चल रहा है। अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला की मां डॉकिंग का लाइव प्रसारण देखकर भावुक हो गईं।


शुभांशु शुक्ला की बहन शुचि मिश्रा ने कहा, “यह न केवल मेरे लिए, बल्कि सभी भारतीयों के लिए गर्व का क्षण है। यह बहुत ही महत्वपूर्ण चरण है। मैं प्रार्थना करती हूं कि यह चरण भी जल्दी से गुजर जाए और वे सुरक्षित रहें।”

बता दें कि, भारतीय एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला सहित चारों एस्ट्रोनॉट आज यानी, 26 जून को शाम 4:00 बजे करीब 28 घंटे के सफर के बाद इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पहुंच गए। शुभांशु ISS पर जाने वाले पहले और स्पेस में जाने वाले पहले भारतीय हैं। इससे 41 साल पहले राकेश शर्मा ने 1984 में सोवियत यूनियन के स्पेसक्राफ्ट से अंतरिक्ष यात्रा की थी।

इससे पहले मिशन क्रू ने स्पेसक्राफ्ट से लाइव बातचीत की। इसमें शुभांशु ने कहा था- नमस्कार फ्रॉम स्पेस! यहां एक बच्चे की तरह सीख रहा हूं… अंतरिक्ष में चलना और खाना कैसे है।”

एक्सियम मिशन 4 के तहत 25 जून को दोपहर करीब 12 बजे सभी एस्ट्रोनॉट ISS के लिए रवाना हुए थे। ये मिशन तकनीकी खराबी और मौसमी दिक्कतों के कारण 6 बार टाला गया था।


ड्रैगन कैप्सूल की डॉकिंग प्रक्रिया
ड्रैगन कैप्सूल की ISS के साथ डॉकिंग एक स्वचालित (autonomous) प्रक्रिया है, लेकिन शुभांशु और कमांडर पेगी व्हिटसन इसकी निगरानी करेंगे. यह प्रक्रिया सटीकता और सुरक्षा के लिए डिज़ाइन की गई है। इसे चार मुख्य चरणों में समझा जा सकता है…

रेंडेजवू (Rendezvous): ड्रैगन कैप्सूल लॉन्च के बाद 90 सेकंड के इंजन फायरिंग के साथ अपनी गति और दिशा समायोजित करता है. दोपहर 2:33 बजे IST तक, यान 400 मीटर नीचे और 7 किमी पीछे से शुरू हुआ और अब 200 मीटर की दूरी पर है। स्पेसएक्स और नासा के ग्राउंड कंट्रोलर यान के सिस्टम की जांच करते हैं।

नजदीक पहुंचेगा (Close Approach): 200 मीटर की दूरी पर, ड्रैगन ISS के साथ सीधा संचार शुरू करता है. यह चरण 6 घंटे तक सुरक्षित पथ पर रह सकता है ताकि कोई जोखिम न हो।

अंतिम स्टेप (Final Approach): 20 मीटर की दूरी पर, ड्रैगन लेजर सेंसर, कैमरे और GPS का उपयोग करके ISS के हार्मनी मॉड्यूल के डॉकिंग पोर्ट से सटीक संरेखण करता है। यह कुछ सेंटीमीटर प्रति सेकंड की गति से आगे बढ़ता है, जो बेहद धीमी और नियंत्रित गति है। शुभांशु इस दौरान यान की गति, कक्षा और सिस्टम (जैसे एवियोनिक्स और प्रणोदन) की निगरानी करेंगे।

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सॉफ्ट और हार्ड कैप्चर (Soft and Hard Capture)

सॉफ्ट कैप्चर: मैग्नेटिक ग्रिपर यान को डॉकिंग पोर्ट की ओर खींचते हैं।

हार्ड कैप्चर: मैकेनिकल लैच और हुक यान को सुरक्षित करते हैं. एक दबाव-रोधी सील बनाई जाती है।

इसके बाद 1-2 घंटे की जांच होगी, जिसमें हवा के रिसाव और दबाव की स्थिरता की पुष्टि होगीष। इसके बाद क्रू ISS में प्रवेश करेगा।

एक बच्चे की तरह सीख रहा हूं
इससे पहले मिशन क्रू ने स्पेसक्राफ्ट से लाइव बातचीत की। इसमें शुभांशु ने कहा था- नमस्कार फ्रॉम स्पेस! मैं अपने साथी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ यहां होने के लिए बहुत एक्साइटेड हूं। उन्होंने कहा- “जब हमें वैक्यूम में लॉन्च किया गया, तब मैं बहुत अच्छा महसूस नहीं कर रहा था। मैं बहुत सोया हूं। यहां एक बच्चे की तरह सीख रहा हूं… अंतरिक्ष में चलना और खाना कैसे है।”

41 साल बाद कोई भारतीय एस्ट्रोनॉट अंतरिक्ष में गया
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा और भारतीय एजेंसी इसरो के बीच हुए एग्रीमेंट के तहत भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला को इस मिशन के लिए चुना गया है। शुभांशु इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर जाने वाले पहले और स्पेस में जाने वाले दूसरे भारतीय हैं। इससे 41 साल पहले राकेश शर्मा ने 1984 में सोवियत यूनियन के स्पेसक्राफ्ट से अंतरिक्ष यात्रा की थी।

शुभांशु का ये अनुभव भारत के गगनयान मिशन में काम आएगा। ये भारत का पहला मानव अंतरिक्ष मिशन है, जिसका उद्देश्य भारतीय गगनयात्रियों को पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजना और सुरक्षित रूप से वापस लाना है। इसके 2027 में लॉन्च होने की संभावना है। भारत में एस्ट्रोनॉट को गगनयात्री कहा जाता है। इसी तरह रूस में कॉस्मोनॉट और चीन में ताइकोनॉट कहते हैं।

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