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गणपति प्रतिमा के गिरने की जगह पर थे सौ से अधिक गड्ढे, यानि कागजों, दावों में पैचवर्क, इसलिए क्षतिग्रस्त हुई "आस्था"

 गणपति प्रतिमा के गिरने की जगह पर थे सौ से अधिक गड्ढे, यानि कागजों, दावों में पैचवर्क, इसलिए क्षतिग्रस्त हुई "आस्था"

 ग्वालियर। 25 फीट ऊंचे खल्लासीपुरा के राजा के विराजित होने से पहले सड़क के गड्ढे के कारण क्षतिग्रस्त होने की शर्मसार करने वाली घटना ने त्योहारों पर की जाने वाली मूलभूत प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर कई सवालों को जन्म दिया है। क्या जिला प्रशासन की त्योहार से पहले की जाने वाली बैठकें औपाचरिकताओं तक सीमित रहती है।अगर वाकई जिम्मेदारी अधिकारियों ने गणेश मंडलों से समवंय के साथ गणेशोत्सव के तैयारी की होती तो इस तरह की घटना नहीं होती।खासबात यह है कि शहर के जीवाजीगंज से शिंदे की छावनी तक की रोड जर्जर और खुदी हुई है। छोटे-बड़े इतने गड्‌ढे मिले कि इन्हें अंगुलियों पर नहीं गिना जा सकता है। रोड की हालत ऐसी है कि जिस रथ पर गणेश प्रतिमा थी, उसे 2 किलोमीटर तक ही आगे बढ़ाने में 300 से ज्यादा भक्तों को 20 घंटे लग गए। रथ 2 बार पंक्चर भी हुआ था। इसके उलट निगम का दावा था कि पेचवर्क कराया गया है! 

पहला सवाल
नगर निगम ने जीवाजी गंज से लेकर अचलेश्वर तक के मार्ग पर पेंच वर्क तो कर दिया, लेकिन खल्लासीपुरा शिंदे की छावनी तक नहीं किया।अगर किया होता नवाब साहब के कुएं के टर्न पर सड़क पर गड्ढा नहीं होता,जिसके कारण मूर्ति गिरी।

दूसरा सवाल 

क्या प्रशासनिक अधिकारियों की संज्ञान में यह बात नहीं थी कि खल्लासीपुरा के राजा के रूप में बीजासेन माता मंदिर पर विराजित होने वाले श्रीजी की ऊंचाई सबसे अधिक 25 फीट है। अगर इस बात जानकारी थी, तो फिर गणपति बप्पा को विराजित स्थल तक ले जाने के लिए ट्रैफिक को व्यवस्थित करने से लेकर अन्य इंतजाम क्यो नहीं किये गये।


एक्सपर्ट राय-
प्रतिमा के आकार व ऊंचाई के अनुसार रूपरेखा तय होनी चाहिए- ट्रैफिक व आइबी अपनी सेवाएं दे चुके सेवानिवृत्त डीएसपी सुरेंद्र परमार का कहना है कि इस तरह के आयोजनों से किशोर व कम उम्र के युवा जुुड़े होते हैं, उन्हें अपनी जिम्मेदारी का आभास नहीं होता है।यह लोग प्रतिमा की सुरक्षा के प्रति सजग कम रहते हैं। प्रशासन को थाना प्रभारियों व कार्यपालिक मजिस्ट्रेट को गणेश मंडलों के साथ बैठकर जानकारी ले जानी चाहिए, कौन सा मंडल कितनी ऊंची और कितने आकार की प्रतिमा विराजित कर रहा है। प्रतिमा को लाने व विसर्जन का मार्ग भी 15 दिन पहले तय हो जाना चाहिए। ताकि प्रशासन व नगर निगम प्रतिमा की मार्ग आने वाली बाधाओं को पहले से दूर कर सकें।

- बिजली के तारों से प्रतिमा को निकालने के लिए कोई अनुभवी इलेक्ट्रीशियन इनके साथ हो।
- मंडल ने प्रतिमा को निकालने के लिए क्रेन व कोई हाइड्रोलिक वाहन भी अपने साथ रहे।
- मार्ग में पड़ने वाले पेड़ों को छांटने के लिए प्रशिक्षित लोग इनके साथ हो।
 

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