पाप तो है पर पाप से डरता कौन है
23-Sep-2024
पाप तो है पर पाप से डरता कौन है
देश में बहुत से लोग चार धाम की तरह एक बार तिरुपति भी जरूर जाना चाहते हैं क्योंकि देश मेंं तिरुपति बालाजी को मानने वाले बहुत हैं।वह देश के लोगों के लिए आस्था का एक बड़ा केंद्र है।हर साल करोड़ो लोग आते हैं और करोड़ों रुपए चढ़ाते हैं। करोड़ों लोगों के लिए करोड़ों रुपए का प्रसाद बनता है। कोई सोच नहीं सकता था कि भगवान बालाजी के नाम से बांटे जाने वाले प्रसाद को बनाने में भी कोई भ्रष्टाचार कर सकता है।देश के लोगों को पहली बार पता चला है कि तिरुपति के लड्डू को बनाने में अशुध्द घी का इस्तेमाल किया गया।
तिरुपति तिरुमाला में अशुध्द घी के लड्डू प्रसाद के रूप में बांटने पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा है कि तिरुपति मंदिर में प्रसाद के रूप में बांटे जाने वाले लड्डू में मिलावट पाप है। भगवान के प्रसाद में धन कमाने के लोभ में मिलावट पाप तो है। लेकिन अब ऐसे पाप से कुछ लोगों को डर नहीं लगता है। उनके लिए तो पैसा ही सबकुछ है। पैसा ही भगवान है।उनको पैसा मिल गया तो मानते हैं भगवान मिल गया। पैसा मिलना चाहिए वह पैसे के लिए कुछ भी कर सकते हैं। पाप तो क्या महापाप भी कर सकते है।
भगवान के मंदिरों में भ्रष्टाचार की हिंदू समाज के लोग कल्पना नहीं कर सकते लेकिन अब ऐसा किया जा रहा है। अच्छा हुआ इसका खुलासा हो गया। अन्यथा यह पाप जो लोग कर रहे थे, वह करते रहते, वह होने देते।चंद्रबाबू नायडू ने यह खुलासा किया है तो इस पर राजनीति तो होनी ही है। इसका राजनीतिक फायदा तो उस दल को मिलेगा ही जिसने तिरुपति मंंदिर के प्रसाद की पवित्रता का ख्याल रखा। उसकी जांच कराई कि प्रसाद किसी कारण से अपवित्र तो नहीं हो गया है। जांच में पता चला कि लड्डू का प्रसाद बनाने जो घी उपयोग किया जा रहा था उसमें पशु की चर्बी की मात्रा थी। अब तिरुपति तिरुमला देवस्थानम(टीटीडी) ने इस स्वीकार कर लिया है।अब इसके लिए दोषी कौन है। यह विवाद का विषय हो गया है।
कुछ लोग मान रहे हैं कि मंदिर के लिए घी का टेंडर जगन रेड्ड़ी सरकार के समय हुआ था, बताया जाता है कि लड्डू के लिए ३१९ रुपए किलो में असली गाय का घी खरीदने को मंजूरी दी गई थी, तब भी लोगों ने इस बात पर संदेह जताया था कि गाय का असली घी बाजार में पांच सौ रुपए में मिल रहा है तो इतना सस्ता क्यों खरीदा जा रहा है, कहीं घी में मिलावट तो नही है। जाहिर है कि तब की सरकार ने इस पर ध्यान देना जरूरी नहीं समझा। हो सकता था कि उनको उम्मीद रही हो कि हमारी सरकार वापस आ जाएगी तो यह मामला दबा ही रहेगा किसी की हिम्मत नहीं होगी कि हमारे खिलाफ कोई कुछ कहे। सरकार बदल गई और वह भ्रष्टाचार सामने आ गया जिसे हिदू समाज ने बहुत गंभीरता से लिया है। हिंदू समाज के लिए तो यह बहुत ही बुरी बात है कि मंदिर के प्रसाद में भ्रष्टाचार कर उसके पवित्रता को नष्ट कर दिया जाए।
हिंदू समाज ऐसे लोगों या राजनीतिक दलों को माफ नहीं करता जो हिंदू समाज की मंदिरों की संस्कृति को नष्ट करने या उन पर सवालिया निशान लगाने का प्रयास करते हैं। यह बात चंद्रबाबू नायडू भी जानते हैं और जगन रेड्डी भी जानते हैं।चंद्रबाबू नायडू को मौका मिला है दक्षिण भारत मे हिंदुत्व की राजनीति की धारा में मजबूत करने का, वह खुद को दक्षिण भारत में हिदुत्व की राजनीति के नायक के रूप में पेश कर रहे है। पवन कल्याण भी यही कर रहे हैं। हाल ही में आंध्र सरकार ने मंदिरों के हित में जो फैसला लिया है,वह भी इसी तरह का प्रयास है।
यही वजह है कि जब चंद्रबाबू नायडू इस मामले में जगन रेड्डी को सवालों के कठघरे में खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं तो जगन रेड्डी भी खुद को मंदिर की पवित्रता के रक्षक के रूप में पेश करने का प्रयास कर रहे है और बता रहे है कि नायडू के समय घी की जांच के बाद यदि १५ बार घी के टैंकर रिजेक्ट किए गए थे तो मेरे समय मेें १८ बार घी के टैंकर रिजेक्ट किए गए थे।
जगन रेड्डी इस मामले में अपने को बचाने के लिए यह भी कह रहे हैं कि प्रसाद की शुध्दता बनाए रखना टीटीडी का काम है,मेरा या सरकार का काम नहीं है।घी की शुध्दता मापने को कोई तरीका टीटीडी के पास नहीं था, बाहर से घी टेस्ट कराकर सप्लाई कर दी जाती थी। उसे ठीक मान लिया जाता था। अगर अभी भी भ्रष्टाचार का खुलासा नहीं हुआ होता तो वही अशुध्द घी को ठीक मानकर उपयोग किया जाता रहता।
अगर अब घी की शुध्दता के लिए मशीन लगाई जा सकती है तो सवाल उठना स्वाभाविक है कि यह व्यवस्था पहले क्यों नहीं की गई। क्या इसलिए नहीं की गई कि मंदिर के प्रसादम के नाम पर को भ्रष्टाचार किया जा रहा था, वह चलता रहे। भगवान के प्रसाद में मिलावट के नाम पर जो पाप किया जा रहा था वह होता रहे और मंदिर का पैसा कुछ लोगों की जेब में जाता रहे।
ऐसा वही लोग कर सकते हैं जो हिंदू नही है। जो सनातन को नहीं मानते हैं।जो हिंदू समाज को किसी भी तरह से कमजोर करना चाहते हैं।जो हिंदू समाज का राजनीतिक प्रभुत्व नहीं बढ़ने देना चाहते है। जो काम कुछ लोग उत्तर भारत में कर रहे हैं वही काम कुछ लोग दक्षिण भारत में कर रहे है।उत्तर भारत के हिंदू तो जाग रहे हैं, अब जरूरत दक्षिण भारत के हिंदुओं के जागने की है।