पितृ ऋण तीन पीढ़ियों तक क्यों रहता है साथ? श्राद्धपक्ष में जानिए मुक्ति के उपाय
13-Sep-2025
धार्मिक मान्यताओं में पितृ ऋण का महत्व अत्यंत गहरा माना गया है. शास्त्रों के अनुसार यह ऋण केवल आर्थिक या भौतिक नहीं, बल्कि भावनात्मक और आध्यात्मिक जिम्मेदारी है. मान्यता है कि हर मनुष्य जन्म के साथ ही अपने पूर्वजों का ऋणी होता है और यह ऋण पिता, दादा और परदादा यानी कुल तीन पीढ़ियों तक चलता है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब तक पितरों का विधिपूर्वक तर्पण, श्राद्ध और दान नहीं किया जाता, तब तक यह ऋण शेष रहता है. यही कारण है कि पितृपक्ष को विशेष महत्व दिया गया है. यह समय केवल पितरों की आत्मा की शांति के लिए ही नहीं, बल्कि परिवार की उन्नति और समृद्धि के लिए भी अनिवार्य माना गया है.
पितृ ऋण से मुक्ति के मार्ग (Pitru Rin Significance in Shraddh Paksha)
धर्मशास्त्र बताते हैं कि पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्रद्धा भाव से अमावस्या और पितृपक्ष में तर्पण और श्राद्ध करना चाहिए. इसके अलावा दान-पुण्य, विशेषकर भोजन, वस्त्र और जलदान का महत्व बताया गया है. कई ग्रंथों में गायत्री मंत्र जप, पितृ स्तोत्र पाठ और ब्राह्मण भोजन को भी अत्यंत फलदायी माना गया है. साथ ही, माता-पिता की सेवा, धर्मपालन, सत्य और दया का आचरण भी पितरों की कृपा पाने और ऋण से मुक्त होने के सर्वोत्तम साधन माने गए हैं.
धर्मग्रंथ स्पष्ट कहते हैं कि पितृ ऋण केवल कर्म और कर्तव्य का बंधन है. यदि संतान श्रद्धा, सेवा और धर्ममार्ग पर चलती है तो पितृ ऋण की परतें स्वतः हल्की होती जाती हैं और परिवार पर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद बना रहता है.