पोल खुल जाए तो यह बहाना भी अच्छा है
31-Dec-2024
हर सरकार में तरह तरह के भ्रष्टाचार होते हैं। उसकी कभी न कभी पोल तो खुलती है। पोल खुलने पर होती है तरह तरह की बहानेबाजी।जांच होती है तो पता चलता है कि हजारों करोड़ का घोटाला हुआ है। जांच होती है तो लोग देर सबेर गिरफ्तार भी किए जाते हैं।जांच एजेंसी को सबूत मिलते हैं तो एक के बाद घोटाले से जुड़े हुए लोगों की गिरफ्तारी भी होती है। कई लोग गिरफ्तार कर जेल भेजे जाते हैं।छत्तीसगढ़ में हुए शराब घोटाले में भूपेश सरकार में आबकारी मंत्री रहे कवासी लखमा और उनके करीबियों के यहां ईडी ने छापा मारा है।
देरसबेर तो यह होना था क्योंकि जिस आबकारी विभाग में दो हजार करोड़ रुपए का शराब घोटाला हुआ है, उसके मंत्री तो कवासी लखमा थे। यानी विभाग के सबसे बड़़े पद पर वह थे और इसी आधार पर विभाग में जो कुछ हुआ उसके लिए उनको जिम्मेदार भी बताया जा सकता है। कोई इस बात को कैसे मान सकता है कि विभाग में हजारों करोड़ की गड़बड़ी हो रही हो और मंत्री को पता न हो।ईडी के मुताबिक छत्तीसगढ़ में शराब घोटाला सिंडीकेट बनाकर किया गया है। यानी अधिकारियों व नेताओं ने मिलकर यह शराब घोटाला किया है।
ईडी डेढ़ साल से इस मामले की जांच कर रही है।उसकी ईसीआईआर यानी रिपोर्ट में कई खुलासे हुए हैं। इसमें बतौर आबकारी मंत्री कवासी लखमा की भूमिका पर ईडी का कहना है कि कवासी लखमा को शराब घोटाले के चलते हर महीने ५० लाख रुपए कमीशन मिलता था।जो कि इस घोटाले का वित्तीय हिस्सा था। ईडी ने इस मामले में कुल ७० लोगों पर एफआईआर दर्ज की है। इसमें आबकारी मंत्री रहे कवासी लखमा भी शामिल हैं।कवासी लखमा अशिक्षित हैं,बताया जाता है कि वह हस्ताक्षर भी नहीं कर सकते। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि राजस्व से जुड़ा इतना अहम विभाग उनको क्यों दिया गया।क्या कवासी लखमा को इसलिए यह विभाग दिया गया था कि अधिकारियों व नेताओं का सिंडीकेट बनाकर हजारों करोड़ का शराब घोटाला किया जाए।
इस आधार पर तो यह भी लोग कह सकते हैं कि शराब घोटाले की योजना पहले बनाई गई उसके बाद आबकारी विभाग ऐसे विधायक को दिया गया जो अशिक्षित हो, हस्ताक्षर तक न कर सकता हो, ऐसे सर्वथा उपयुक्त विधायक कवासी लखमा थे। अब भूपेश बघेल सरकार के समय हुए शराब घोटाले की पाेल खुलती जा रही है। ईडी कवासी लखमा व सहयोगियाें का छापा मार रही है तो कवासी लखमा कह सकते हैं कि वह तो अनपढ़ है,उनके अनपढ़ होने का फायदा अधिकारियों ने उठाकर शराब घोटाला किया है। शराब घोटाले के बारें में उनको कुछ पता नहीं है।
सब जानते हैं कि किसी विभाग में कोई घाेटाला होता है कि उसके मंत्री को इसके लिए दोषी माना जाता है, छत्तीसगढ़ में ऐसा न हो इसलिए मंत्री को बचाने का उपाय पहले ही सोच लिया गया था, मंत्री अगर अनपढ़ हो तो वह यह कहकर बच सकता है कि मैं तो अनपढ़ हूं, अधिकारियों ने किया जाे कुछ किया है। यानी घोटाला करने के पहले ही मंत्री को बचाने का उपाय भी सोच लिया गया था।कवासी लखमा भले ही कहें कि उनको कोई पैसा नहीं दिया गया लेकिन ईडी कह रही है कि उनको हर महीने सिंडीकेट पचास लाख दे रहा था तो इसमें कुछ तो सच्चाई हो सकती है।
ईडी के मुताबिक शराब घोटाला दो हजार करोड़ रुपए किया गया है तो पचास लाख महीना के हिसाब से सिंडीकेट ने कवासी लखमा को साल का छह करोड़, पांच साल का तीस करोड़ रुपए तो मिला होगा।ऐसे में लोग तो कहेंगे ही दो हजार करोड़ के शराब घोटाले को देखते हुए यह तो बहुत ही कम मिला है कवासी लखमा काे।वह भी आबकारी मंत्री होते हुए। सब कुछ उनके विभाग में किया गया, नाम उनका बदनाम हुआ, विभाग का बदनाम हुआ और मिला क्या ऊंट के मुंह में जीरा के समान मात्र तीस करोड़।
अब राज्य के लोगों को इसमें कोई संदेह नहीं रह गया है कि आबकारी घोटाला सुनियोजित तरीके से सिंडीकेट बनाकर किया गया है। इसमें शामिल सभी लोगों को कुछ न कुछ तो मिला ही है।सबने विभाग की बहती गंगा में जमकर हाथ धाेए हैं। जांच होने पर सबके नाम सामने आ गए है। राज्य के लोगों को पता चल गया है कि शराब घोटाले में कौन कौन शामिल थे। साय सरकार की तरह भूपेश सरकार भी चाहती तो आबकारी विभाग में घोटाला नहीं होता। यदि सीएम साय की तरह भूपेश बघेल भी आबकारी विभाग अपने पास रखते यह सोचकर कि इसमें घोटाला होने की सबसे ज्यादा गुंजाइश होती है। सीएम साय ने ऐसा किया है, आबकारी विभाग में घोटाला न हो इसलिए यह विभाग उन्होंने अपने पास रखा है। भूपेश बघेल चाहते तो वह भी ऐसा कर सकते थे।