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कभी बिकने की कगार पर था गूगल, याहू ने क्यों किया मना?

 आपसी बातचीत के दौरान आप अक्सर एक वाक्य सुनते होंगे, 'गूगल कर लो।' इससे जाहिर होता है कि एक टेक कंपनी ने हमारी जिंदगी में कितनी गहरी पैठ बना ली है। लेकिन, गूगल कभी बिकने की कगार पर थी, वो भी एक नहीं दो दफा। अगर वह डील हो जाती, तो आज हम शायद गूगल की जगह 'याहू कर लो' कह रहे होते।


गूगल की नींव 4 सितंबर 1998 में पड़ी। इसके शिल्पकार दो लोग थे, लैरी पेज और सर्गेई ब्रिन। उन्हें टेक्नोलॉजी की दुनिया का कोई खास तजुर्बा नहीं था। वे अपने छोटे से स्टार्टअप को याहू के हाथों बेचना चाहते थे, ताकि वे स्टैनफोर्ड में अपनी पढ़ाई दोबारा शुरू कर सकें। उन्होंने सौदे की कीमत रखी, 1 मिलियन डॉलर।

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